भोपाल के रहने वाले हैं रामायण के लक्ष्मण... (सुनील लहरी)

अब ‘आइसक्रीम’ नहीं ‘बिरयानी’ में हाथ आजमा रहे हैं रामायण के लक्ष्मण..!!                                                                                                                                               विशेष संवाददाता भोपाल


 रामायण के लक्ष्मण इन दिनों लज़ीज़ खाना बनाना सीख रहे हैं...!!! चौंकिए मत जैसे तीन दशक बाद रामानंद सागर की ‘रामायण’ छोटे परदे पर धूम मचा रही है, वैसे ही लक्ष्मण राजपाट से दूर लाक डाउन के बीच मुंबई के अपने आशियाने में नए-नए तीरों और युद्ध कौशल के स्थान पर व्यंजनों पर हाथ आजमा रहे हैं और हाल ही में उन्होंने स्वादिष्ट बिरयानी बनायी थी-बिलकुल होटल की तरह और उनके पूरे परिवार ने दिल खोल कर तारीफ की...न न राम-सीता,भरत या शत्रुघ्न ने नहीं,बल्कि असल परिवार ने....जी हाँ, हम बात कर रहे हैं रामायण के लक्ष्मण यानि भोपाल के सुनील लहरी की.


आज से तक़रीबन 27 साल पहले, और रामायण की चरम लोकप्रियता के दिनों में मुझे सुनील लहरी से मिलने और उन पर लिखने का मौका मिला था तब सृजन हुआ था-‘आइसक्रीम बेच रहे हैं रामायण के लक्ष्मण’ लेख का और अब तीन दशक बाद कोरोना की मेहरबानी से रामायण के पुनर्प्रसारण के इस दौर में जब रामायण फिर लोकप्रियता के चरम पर है तो यह जानना जरुरी हो जाता है कि आखिर आइसक्रीम से लक्ष्मण का सफ़र कहाँ तक पहुंचा इसलिए सुनील लहरी से हमारी चर्चा की शुरुआत इसी सवाल से हुई कि वे अभी कहाँ-क्या कर रहे हैं? मानो वे तैयार बैठे थे तभी फटाफट बताने लगे अभी यूट्यूब और मां की रेसिपी को मिलाकर कई नए/अनूठे और स्वादिष्ट आइटम(व्यंजन) बनाना सीख रहा हूँ,वैसे भी लाक डाउन में घर से बाहर तो जा नहीं सकते इसलिए घर में ही क्यों न कुछ नया किया जाए. वैसे ये तो खालिस शौक के लिए है, असलियत में सुनील लहरी वाकई कुछ नया करने में जुटे हैं वे डिजिटल वर्ल्ड से लेकर सीरियलों और फिल्मों की दुनिया में नया करने की जुगत में हैं. सुनील तकनीक और तथ्य को मिलाकर कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो उनके लक्ष्मण के चरित्र की तरह ‘माइलस्टोन’ मतलब अविस्मरणीय हो. फोन में लम्बी बातचीत में उन्होंने खुलकर अपनी भविष्य की योजनाओं का खाका खींचा. उन्होंने बताया कि उन्हें भी उम्मीद नहीं थी कि रामायण का इतने साल बाद प्रसारण पुनः इतना लोकप्रिय होगा क्योंकि इसके बाद रामायण जैसे आधा दर्जन धारावाहिक आ चुके हैं जो तकनीक और भव्यता में रामानंद सागर की रामायण पर बीस ही ठहरते हैं. सुनील स्वयं इस बात को स्वीकार करते हैं कि बाद की रामायणों के कलाकार अभिनय में ज्यादा प्रवीण और सुन्दरता लिए थे. फिर वे ही, तुलनात्मक दृष्टि से सागर साहब की ‘रामायण’ की आज भी लोकप्रियता का रहस्य उजागर करते हैं. सुनील का कहना है हमारी रामायण में भव्यता से ज्यादा भावना थी/ सच्चाई थी और तकनीक से ज्यादा तथ्यों से परिपूर्ण कथानक था. उन्होंने कहा कंटेंट ही किंग है और जब उसमें सच्ची भावनाएं मिल जाती है तो रामायण जैसी किसी अजर-अमर कृति का निर्माण होता है...हमारी रामायण में नजर आई वास्तविकता ही इसकी सफलता का आधार थी और शायद यही वजह है कि यह आज तीसरी पीढ़ी को भी उतनी ही आत्मीयता से अपने साथ जोड़े हुए है. उनकी बात सौ फीसद सच है क्योंकि आज घर में दादा-पापा और उनके बाद की पीढ़ी एक साथ बैठकर इस रामायण के पुनः प्रसारण का आनंद ले रहे हैं.


सुनील के मुताबिक उनकी ‘फैन फालोइंग’ अर्थात प्रशंसकों की संख्या पहले से कहीं ज्यादा हो गयी है.पहले के प्रशंसक पत्रों के जरिये अपना स्नेह दर्शाते थे और अब सोशल मीडिया से प्यार बरसा रहे हैं...और मजे की बात यह है कि अब मम्मी और बेटी दोनों अपने-अपने अंदाज़ में अपने भाव प्रकट करते हैं. सुनील का कहना है कि फिलहाल तो वे अपनी लोकप्रियता के इस दौर का लुत्फ़ उठा रहे हैं. जहाँ तक भोपाल के बिट्टन मार्केट में खोले गए ‘लहरीज’ की बात है तो उसे कुछ साल बाद ही उन्होंने बंद कर दिया था क्योंकि समयाभाव और अच्छे सहयोगियों की कमी के कारण उसे चला पाना कठिन था इसलिए इस जगह को उन्होंने अब किराए पर दे दिया है.


भोपाल और इंदौर में बढ़ते कोरोना संक्रमण से सुनील बहुत दुखी हैं. वे कहते हैं एक मेरा अपना शहर है और दूसरा देश का सबसे स्वच्छ शहर और हमारे मप्र की आन-बान-शान...दुःख होना लाजिमी भी है. उनका कहना है जरा सी लापरवाही हमारे शहरों पर भारी पड़ रही है और हमारी पहचान पर कालिख पोत रही है..अरे कुछ समय घर में अपने परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिल रहा है तो क्या दिक्कत है? सरकार आपसे अपने घर में आराम करने का ही तो कह रही है,कौन सा कोई बड़ा भारी काम करवा रही है. घर में रहे-सुरक्षित रहे और टीवी पर रामायण जैसे कालजयी सीरियलों का आनंद लेते हुए भागमभाग भारी ज़िन्दगी में कुछ पल परिवार के साथ सुकून से गुजारिए ताकि आप भी सुरक्षित रहे,आपका परिवार भी और हमारा देश भी. सुनील खुद पूरी जिम्मेदारी से इस नियम का पालन कर रहे है. हमने भी बढ़ते समय के मद्देनजर लक्ष्मण को उनकी अयोध्या यानि किचन में पर्याप्त समय देने के लिए वार्तालाप को विराम देना उचित समझा..वैसे भी 27 साल पुरानी गुत्थी तो सुलझ ही गयी थी.